Thursday, August 11, 2011
Poem
सन्दीप कंवल
अरे यारो, अरे ये कविता तो मुझे बिल्कुल ही समझ नहीं आई’’
फिर क्या हुआ मेरे यार, जो समझ में आ जाए वो कविता ही क्या,
लेकिन यारो, मैं जब 10 वीं क्लास में था। तो मैनें बहुत ही कविताओं के बारे में जान लिया था। वो भी कविता ही थी न।
अरे भैया, वो जमाना गया, जब वाली कविता सीधी-साधी होती थी। जिसे सभी आसानी से जान जाते थे। लेकिन अब तो कविता सभी कवितांए समझदार हो गई हैं। हर कविता पर कोई न कोई नया प्रयोग हो रहे हैं।
प्रयोग, कैसा प्रयोग, ये कविता कोई पढ़ कर सुनाने वाली थोड़ी है। ये तो नाम की कविता है भाई। नाम की कविता।
समझे नहीं यार,
अब कविता भी पहले जैसी नहीं रही, बहुत बदल गई यार,
कोई कविता पर नई कविता लिख रहा है। कोई कविता पर षोध कर रहा है।
यार, ये नये कवि भी अजब सी कविता लिखने लगे हैं
वो कैसी, जो किसी के समझ मेें ही नहीं आती, इनको ऐसी कविता लिखनी चाहिए जो समझ में आ जाए और उन्हें गुनगुनाया भी जा सके। जिससे कुछ प्रेरणा भी प्राप्त हो।
अरै भैया, कवि ऐसी कविताओं को लिख नहीं सकते, लेकिन ऐसी कविताएं लिखने से आम आदमी के समझ में आ जाएगीं लेकिन इससे कवि का स्टैंडर्ड डाउन हो जाएगा।
कविता तो इंसान है मेरे यार जो अपनी हरकतों से बता देती है दिल की बात ।बेषक उससे कुछ भी पूछा नहीं हो।।
चल छोड़ यार तेरी वाली कविता भी मेरे समझ में नहीं आई।
अरे भैया मैने पहले भी कहा था। और अब भी कह रहा हूं वो कविता ही क्या जा समझ में आ जाए।
उन्हें तो कोई उनके दिल में जगह बनाकर ही समझ सकता है। जो मैंने समझ लिया है।
धन्यवाद
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