Thursday, August 11, 2011

औपचारिकता बन कर रह गया करवा चौथ




परसों ही करवा का वर्त का त्यौहार था। लेकिन करवा के वर्त के पहले ही समाचार-पत्रा को पढ़कर ऐसा लगा कि करवा का वर्त तो नाम मात्रा है। हमारे यूनिवर्सिटी की लड़कियों ने तो हद कर दी। उनको ये पता नहीं है कि करवा का वर्त क्या होता है। क्यों किया जाता है लेकिन फिर भी आधे से ज्यादा लड़कियों ने करवा का वर्त किया और चांद को देखने के लिए सारी हॉस्टल की छत पर लड़किया ही लड़कियां चॉंद निकलने का इंतजार कर रही थी। क्यूं भूखी रही उन्हें पता नहीं कि ये वर्त सिर्फ विवाहित स्त्राीयां ही कर सकती हैं। अभी तो तुम्हारा चांद खिला ही नहीं है खिलेगा तब अपने रंग चाव दिखाना।और एक हादसा जो समाचार पत्रा में देखने को मिला वह बहुत ही दर्दनाक था। वह सिरसा के करीब गांव में एक व्यक्ति की पत्नी करवा चौथ के एक दिन पहले अपना सामान उठाकर अपने घर पर चल देती है। उसके पति को गुस्सा आ जाता हैं और वो उसके हाथ को चक्कू से काट देता है। कहता है कल करवा का वर्त है तुझे मेरा कोई ख्याल नहीं है। पड़ोस की ग्रहणियों को देख अपने पति की खातिर क्या-क्या नहीं करती बेचारी। एक तु है जो चल दी अपना सामान उठाकर।
आज के परिवेस में नारी क्यों अपना मर्यादा भूलती जा रही है। उन्हें भगवान द्धारा दिए गए अपने परमपति परमेसवर पर भरोसा रखकर जी भरकर प्यार करना चाहिए। उन्हें इस बात का आभास होना चाहिए कि उनका धर्म क्या है। अपने धर्म को बड़े ही चाव से निभाना चाहिए। एक वो भी स्त्राी थी जिसने अपने पति को मार को सहकर भी करवा का वर्त किया। जब व्रत का सामान मंगवाती है तो उसका पति उसे पीटता है लेकिन वह उसे कहती है आप मुझे पीट रहे हो ये सब कुछ मैं आपके लिए ही तो कर रही हूं। एकदम से उसका ह्दय परिवर्तन होता हैं। उसको गहरा संताप लगता है। उसे अपनी का गलती का अहसास होता है।
लेकिन वर्तमान परिवेस का व्रत मात्रा छल और दिखावा है। व्रत का मतलब भूखे रहना ही नहीं बल्कि इसके पीछे बहुत बड़ी बात छिपी होती है। इसलिए सभी स्त्राीयों को बहुत ही प्यार से इस परम्परा को निभाना चाहिए। क्योंकि व्यक्ति की पहचान उसकी सम्यता संस्कृति से होती है। अपनी मान-मर्यादाओं को ध्यान में रखकर अपना धर्म निभाना चाहिए।

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